प्रधानमंत्री जी, हमें जागरुक न करिये, सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दीजिये
फोटो कैप्शन: प्लास्टिक के कचरे से भारत ही नहीं पूरी दुनिया त्रस्त है।
सुमन कुमार
‘प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करो, प्लास्टिक धरती और धरती के प्राणियों की सांसें बंद कर रहा है, एक प्लास्टिक बोतल को नष्ट होने में 450 से 1000 साल तक लगते हैं, प्लास्टिक का कचरा इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है’ पिछले कुछ सालों में ऐसे भाषण और ऐसे बयान हमने और आपने बहुत सुने होंगे। मगर क्या हममें से किसी ने अपनी सरकारों से पलट कर ये पूछा कि भई अगर सिंगल यूज प्लास्टिक सभ्यता का दुश्मन है तो इसके उत्पादन पर रोक क्यों नहीं लगाई जा रही?
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों पूरे ताम झाम के साथ स्वच्छता ही सेवा अभियान की शुरुआत की। इससे पहले 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुए भी उन्होंने आज यानी दो अक्टूबर 2019 से देश में सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने का अभियान शुरू करने की लंबी चौड़ी बातें कहीं। मगर जिस दिन उन्होंने स्वच्छता की सेवा अभियान शुरू किया उसी दिन उनकी सरकार के दो अधिकारियों ने बयान जारी कर ये स्थिति स्पष्ट कर दी कि सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन पर किसी तरह का नया प्रतिबंध नहीं लगाने जा रही है। यानी धरती और इसके रहवासियों की जान को चाहे जो भी खतरा हो मगर सरकार अपनी कमाई बंद नहीं करने जा रही है।
अब जरा एक नजर आंकड़ों पर डालते हैं कि प्लास्टिक उद्योग की भारत में क्या स्थिति है?
डाटा बताते हैं कि भारत में हर वर्ष एक करोड़ 78 लाख टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है। इसका 80 फीसदी हिस्सा नष्ट नहीं किया जा सकता है। यानी हम हर साल एक करोड़ 42 लाख टन ऐसा प्लास्टिक अपनी इस धरती की छाती पर जमा कर रहे हैं जो हजारों साल तक नष्ट नहीं हो सकता। ये 2017 का डाटा है। इससे दस साल पहले यानी 2007 में हम 85 लाख टन प्लास्टिक यूज करते थे। यानी सिर्फ दस साल से खपत दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है। उद्योग चैंबर फिक्की के अनुसार भारत में प्लास्टिक उद्योग 48 हजार करोड़ रुपये का है और ये हर साल बढ़ता ही जा रहा है। ये स्थिति तब है जबकि देश के अधिकांश राज्यों में सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा हुआ है।
जब हम सिंगल यूज प्लास्टिक की बात करते हैं तो इसमें प्लास्टिक की थैलियां, प्लास्टिक के चम्मच, ग्लास, प्लेट्स, कप, पानी की पतली वाली बोतलें, स्ट्रा, पैकेजिंग की पन्नी आदि शामिल होती हैं। भारत में प्लास्टिक की थैलियां सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आई हैं। यहां कुल प्लास्टिक उत्पादन का 50 फीसदी हिस्सा सिंगल यूज प्लास्टिक का ही है। ये समझ लीजिये, भारत में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा दो राज्य पैदा करते हैं, पहला महाराष्ट्र और दूसरा पीएम मोदी का गृहराज्य गुजरात। गुजरात तो हाल तक प्लास्टिक उत्पादन में भी नंबर एक पर रहा है। यूपी और बिहार जैसे राज्य प्लास्टिक कचरा उत्पादन में बहुत निचले पायदान पर हैं।
आज महात्मा गांधी की जयंती पर हम स्वच्छता और प्लास्टिक मुक्त भारत की बातें तो बहुत कर रहे हैं मगर हमारी सरकारें अपनी कमाई छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं फिर भले ही उस पैसे का इस्तेमाल करने के लिए धरती पर इंसान ही न बचें क्योंकि हम माने या न माने प्लास्टिक आज इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है।
दूसरी ओर अधिकारियों और सरकार के अपने तर्क हैं। सबसे पहला तर्क तो अर्थव्यवस्था की सुस्ती का ही है कि यदि तत्काल इसपर रोक लगा दी गई तो लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे और पहले से ही संकट में चल रही अर्थव्यवस्था और चरमरा जाएगी। दूसरा बहाना है पैकेजिंग कंपनियों की चुनौती का। दरअसल पैकेजिंग का पूरा काम प्लास्टिक उद्योग पर ही टिका होता है। अगर एक झटके से सिंगल यूज प्लास्टिक को बंद कर दिया जाए और पैकेजिंग के लिए कोई दूसरा मैटेरियल उपलब्ध न हो तो ये उद्योग भी खतरे में आ जाएगा। हम इसे बहाना इसलिए कह रहे हैं कि पैकेजिंग उद्योग सिंगल यूज प्लास्टिक का बेहद कम इस्तेमाल करता है। सरकारें चाहें तो सिर्फ चुनिंदा कंपनियों को इसके लिए प्लास्टिक उत्पादन का लाइसेंस देकर बाकी का उत्पादन तत्काल रोका जा सकता है। 48 हजार करोड़ रुपये की इंडस्ट्री का बंद होना कोई इतना बड़ा झटका नहीं है जो भारत जैसी विशाल अर्थव्यवस्था जैसा देश सह न सके। अपनी धरती को बचाने के लिए ये शायद बहुत मामूली सी कीमत है।
वैसे सरकार का कहना है कि उसने 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक को धीरे-धीरे चलन से बाहर करने की योजना बनाई है। इसके तहत प्लास्टिक के विकल्प की तलाश करते हुए लोगों को प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने के लिए प्रेरित किया जाएगा। देश में समस्याओं को टालने के इतिहास को देखते हुए ये कदम कितने कारगर होंगे ये कहना मुश्किल है।
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